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Saturday, September 1, 2012

कविता ने चोदना सिखाया [भाग २]

कविता ने चोदना सिखाया [भाग २]


मैं धीरे से आगे बढ़कर कविता को अपनी बाँहों में भर लिया और बिना कुछ बोले उसके होठों को चूमने लगा | कविता भी मुझसे लिपट गयी और बेतहाशा मुझे चूमने लगी | ” अमित मैं तुम्हारे प्यास में मरी जा रही थी, मुझे जवानी का असली मज़ा दे दो ” कविता बोल रही थी | मैंने कविता को अपनी गोद में उठाया और बिस्तर पे लिटा दिया | फिर उसके बगल में लेट कर उसके बदन से खेलने लगा | मैंने उसकी ब्लाउज और पेटीकोट उतार दी और खुद भी नंगा हो गया | कविता मेरे लंड को अपने हाथ में भर ली और उससे खेलने लगी ” हाय अमित,, तुम्हारा लंड तो बड़ा मोटा है..आज तो मज़ा आ जायेगा ” | कविता अब सिर्फ काली ब्रा और चड्डी में थी | उसके गोरे बदन पे काली ब्रा और चड्डी बहुत ज्यादा सेक्सी लग रही थी |



मैंने शुरुआत तो कर दी थी पर मैं अभी भी कुंवारा था, लड़की चोदने का मुझे कोई अनुभव तो था नहीं | शायद मेरी झिझक को कविता समझ गयी, उसने बोला ” अमित तुम परेशान मत हो, मैं तुम्हे चुदाई का खेल सिखा दूंगी, तुम बस वैसा करो जैसा मैं कहती हूँ, दोनों को खूब मज़ा आएगा” | मैं अब आश्वस्त हो गया | कविता ने खुद अपनी ब्रा खोल कर हटा दी | उसके गोरे गोरे चूचियां आज़ाद हो कर फड़कने लगे | गोरी चुचियों पे गुलाबी निप्प्ल्स ऐसे लग रहे थे जैसे हिमालय की छोटी पे किसी ने चेरी का फल रख दिया हो | कविता ने मुझे अपनी चुचियों को चूसने के लिए कहा | मैंने उसकी दाई चूची को अपने मुह में भर लिया और बछो की तरह चूसने लगा | साथ ही साथ मैं दुसरे हाथ से उसकी बायीं चूची को मसल रहा था | कविता अपनी आँखें बंद कर के सिस्कारियां भर रही थी | फिर मैंने धीरे धीरे अपना हाथ उसकी चड्डी की तरफ बढाया | कविता ने चुतड उठा कर अपने चड्डी खोलने में मेरी मदद की | कविता की बूर देख कर मैं दंग रह गया, एकदम गुलाबी, चिकनी बूर थी उसकी, झांटो का कोई नमो-निशान भी नहीं था | मैंने ज़िन्दगी में पहली बार असली बूर देखि थी, मेरा तो दिमाग सातवें आसमान पे था |

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की इस गुलाबी बूर के साथ मैं क्या करू | कविता मेरी दुविधा को भांप गयी | उसने मेरा मुह पकड़ के अपने बूर पे चिपका दिया और बोली ” अमित, चाटो मेरी बूर को, अपने जीभ से मेरी बूर को सहलाओ” | मैंने भी आज्ञाकारी बच्चे की तरह उसकी नमकीन बूर को चटाने लगा | अलग ही स्वाद था उसकी बूर का, ऐसा स्वाद जो मैंने जिंदगी में कभी नहीं चखा था क्यूंकि वो स्वाद दुनिया में किसी और चीज में होती ही नहीं | मैंने जानवरों की तरह उसकी बूर को चाट रहा था और अपने जिब से उसकी गुलाबी बूर के भीतर का नमकीन रस पी रहा था | कविता की सिस्कारियां बढाती जा रही थी और उन्हें सुन सुनकर मेरा लंड लोहे की तरह कड़ा हो गया था | १० मिनट के बाद कविता बोली ” अमित डार्लिंग, अब मेरी बूर की खुजली बर्दास्त नहीं हो रही , अपना लंड पेल दो और मेरी बूर की आग शांत करो ” मैंने जैसे ब्लू फिल्मो में देखा था वैसे करने लगा | कविता की दोनों पैरो को फैलाया और अपना लंड उसकी बूर में  घुसाने की कोशिस करने लगा | कुछ तो कविता की बूर कसी हुई थी, कुछ मुझे अनुभव नहीं था इसलिए मेरे पुरे कोशिश के बावजूद भी मेरा लंड अन्दर नहीं जा रहा था | मैंने अपने आप भे झेंप गया | मेरे सामने कविता अपनी टांगो को फैला कर लेटी थी और मैं चाह कर भी उसे चोद नहीं पा रहा था |

कविता मेरी बेचारगी पे हँस रही थी | वो बोली ‘ अरे मेरे बुद्धू राजा, इतनी जल्दीबाज़ी करेगा तो कैसे घुसेगा, जरा प्यार से कर, थोडा अपने लंड पे क्रीम लगा और फिर मेरे बूर के मुह पे टिका, फिर मेरी कमर पकड़ के पूरी ताकत से पेल दे अपने लौंडे को ” | मैंने वैसे ही किया, अपने लंड पे ढेर सारा वेसेलिन लगाया, फिर उसकी दोनों टांगो को पूरी तरह चौड़ा किया और उसकी बूर के मुह पे अपने लंड का सुपाडा टिका दिया | कविता की बूर बहुत गरम थी, ऐसा लग रहा था जैसे मैंने चूल्हे में लंड को दाल दिया हो | फिर मैंने उसकी कमर को दोनों हाथो से पकड़ा और अपनी पूरी ताकत से पेल दिया | कविता की बूर को चीरता हुआ मेरा लंड आधा घुस गया | कविता दर्द से चिहुंक उठी ” आराम से मेरे बालम, अभी मेरी बूर कुंवारी है, जरा प्यार से डालो , फाड़ दोगे क्या ” | मैंने एक और जोर का धक्का लगाया और मेरे ७ इंच का लंड सरसराता हुआ कविता की बूर में घुस गया | कविता बहुत जोर से चीख उठी | मैं घबरा गया, देखा तो उसकी बूर से खून निकालने लगा था | मैंने पूछा ” कविता बहुत दर्द हो रहा है क्या, मैं निकाल लूं बाहर “| कविता बोली ” अरे नहीं मेरे पेलू राम, ये तो पहली चुदाई का दर्द है , हर लड़की को होता है, पर बाद में जो मज़ा आता है उसके सामने ये दर्द कुछ नहीं है, तू पेलना चालू कर ” |

कविता के कहने पे मैंने धीरे धीरे धक्के लगाना शुरू कर दिया | कविता की बूर से निकालने वाले काम रस से उसकी बूर बहुत चिकनी हो गयी थी और मेरा लंड अब आसानी से अन्दर बहार हो रहा था | मैंने धीरे धीरे पेलने की रफ़्तार बढ़ा दी | हर धक्के के साथ कविता की मादक सिस्कारियां तेज़ होती जा रही थी | उसकी मदहोश कर देने वाली सिस्कारियों से मेरा जोश और बढ़ता जा रहा था | अब कविता भी अपने चुतड उछाल उछाल कर चुदवा रही थी | ” और जोर से पेलो, और अन्दर डालो . आह्ह्हह्ह उम्म्म्म और तेज़ , पेलो मेरी बूर में.. फाड़ दो मेरी बूर को, पूरी आग बुझा दो ” कविता की ऐसी बातों से मेरा लंड और फन फ़ना रहा था | कविता तो ब्लू फिल्म की हिरोईन से भी ज्यादा मस्त थी | १५- २० मिनट की ताबड़तोड़ पेलम पेल के बाद मुझे लगा की मैं उड़ने लगा हूँ |  मैं बोला ‘ कविता मुझे कुछ हो रहा है , मेरे लंड से कुछ निकालने वाला है, मैं फट जाऊंगा ” | कविता बोली ” ये तो तेरा पानी है डार्लिंग, उसे मेरी बूर में ही निकलना, मैं भी झाड़ने वाली हूँ आह्ह्ह आह्ह्ह इस्स्स्स उम्म्मम्म ” | थोड़ी देर बाद मेरे लंड से पिचकारी निकाल गयी और कविता के बूर को भर दिया | कविता भी एकदम से तड़प उठी और मुझे अपने सिने से भींच लिया ” उसकी बूर का दबाव मेरे लंड पे बढ़ गया जैसे वोह मुझे निचोड़ रही हो |

दो मिनट के इस तूफान के बाद हम दोनों शांत हो गए और एक दुसरे पे निढाल हो कर लेट गए | मेरी पहली चुदाई के अनुभव के बाद मुझमे इतनी भी ताकत नहीं बची थी की मैं उठ सकूँ | हम दोनों वैस एही नंगे एक दुसरे सी लिपट कर सो गए | एक घंटे बाद कविता उठी और अपने कपडे पहनने लगी | मेरा मूड फिर से चुदाई का होने लगा तो उसने मन कर दिया, बोली ‘ अभी तो पूरा हफ्ता बाकी है डार्लिंग, इतनी जल्दीबाज़ी मत करो, बहुत मज़ा दूंगी मैं तुमको ” |
पुरे हफ्ते हम दोनों ने अलग अलग तरीके से चुदाई का खेल खेला, बाकि कहानी फिर कभी सुनाऊंगा |

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