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Saturday, September 1, 2012

कविता ने चोदना सिखाया [भाग १]

कविता ने चोदना सिखाया [भाग १]


हेल्लो दोस्तों | मेरे नाम अमित है और मैं झाँसी का रहने वाला हूँ | हमारे घर में एक नौकरानी है जिसका नाम कविता है | कविता को हमारे घर वाले गाँव से लाये थे | उसकी उम्र मेरे बराबर ही थी, और हम दोनों एक साथ ही जवान हुए थे |अब हम दोनों २० साल के थे, और कविता का बदन एकदम खिल चूका था | उसकी चूचियां काफी बड़ी और चुतड एकदम मस्त हो गए थे | मैं भी जवान हो चूका था और दोस्तों से चुदाई के बारे में काफी जान चूका था, पर कभी किसी लड़की को चोदने का मौका नहीं मिला था | कविता हमेशा मेरे सामने रहती थी जिसके कारण मेरे मन में कविता की चुदाई के  ख्याल आने लगे | जब भी वो झाड़ू- पोछा करती तो मैं चोरी- चोरी उसकी चुचियों को देखता था | हर रात कविता के बारे में ही सोच सोच कर मुठ मरता था | मैं हमेशा कविता को चोदने के बारे में सोचता था पर कभी न मौका मिला न  हिम्मत हुई | एक बार कविता ३ महीनो के लिए अपने गाँव गयी, जब वो वापस आयी तो पता चला की उसकी शादी तय हो गयी थी | मैं तो कविता को देख कर दंग ही रह गया | हमेशा सलवार-कमीज़ पहनने वाली कविता अब साड़ी में थी | उसकी चूचियां पहले से ज्यादा बड़ी लग रही थी, शायद कसे हुए ब्लाउज के कारण या फिर सच में बड़ी हो गयी थी |उसके चुतड पहले से ज्यादा मज़ेदार दिख रहे थे, और कविता की चल के साथ बहुत मटकते थे |




कविता जब से वापस आयी थी उसका मेरे प्रति नजरिया ही बदल गया था | अब वो मेरे आसपास ज्यादा मंडराती थी | झाड़ू-पोछा करने समय कुछ ज्यादा ही चूचियां झलकती थी | मैं भी मज़े ले रहा था , पर मेरे लंड बहुत परेशान था, उसे तो कविता की बूर चाहिए थी | मैं बस मौके की तलाश में रहने लगा | कुछ दिनों के बाद मेरे मम्मी-पापा को किसी रिश्तेदार की शादी में जाना था, एक हफ्ते के लिए | अब एक हफ्ते मैं और कविता घर में अकेले थे | हमारे घर वालो को हम पर कभी कोई शक नहीं था, उन्हें लगता था की हम दोनों के बिच में ऐसा कुछ कभी नहीं हो सकता | इसलिए वोह निश्चिंत होकर शादी में चले गए |

जब मैं दोपहर को कॉलेज से वापस आया तो देखा की कविता किचन में थी | उसने केवल पेटीकोट  और ब्लाउज पहना  था | उसदिन गर्मी बहुत ज्यादा थी और कविता से गर्मी शायद बर्दास्त नहीं हो रही थी | कविता की गोरी कमर और मस्त चूतड़ों को देख कर मेरे लंड झटके देने लगा | मैं ड्राविंग रूम में जाकर बैठ गया और कविता को खाना लाने को कहा | जब कविता खाना ले कर आयी तो मैंने  देखा की उसने गहरे गले का ब्लाउज पहना है जिसमे उसकी आधी चूचियां बाहर दिख रही थी | उसकी गोरी गोरी चुचियों को देख कर मेरा लंड और भी कड़ा हो गया और मेरे पैंट में तम्बू बन गया | मैं खाना खाने लगा और कविता मेरे सामने सोफे पे बैठ गयी | उसने अपना पेटीकोट कमर में खोश रखा था जिस से उसकी चिकनी टांगे घुटने तक दिख रही थी | खाना खाते  हुए  मेरी नज़र जब कविता पे गयी तो मेरे दिमाग सन्न रह गया |कविता सोफे पे टांगे फैला के बैठी थी और उसकी पेटीकोट जांघ तक उठी हुई थी | उसकी चिकनी जांघो को देखकर मुझे लगा की मैं पैंट में झड़ जाऊंगा | कविता मुझे देख कर मुश्कुरा रही थी | उसने पूछा “और कुछ लोगे क्या अमित ” मैंने ना में सर हिलाया और चुप चाप खाना खाने लगा | खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में चला गया तो कविता मेरे पीछे पीछे आयी | उसने पूछ ” क्या हुआ अमित, खाना अच्छा नहीं लगा क्या ” | मैंने बोला ” नहीं कविता, खाना तो बहुत अच्छा था ” | फिर कविता बोली  ” फिर इतनी जल्दी कमरे में क्यूँ आ गए,, जो देखा वो अच्छा नहीं लगा क्या “, ये बोलते हुए कविता अपने बूर पे पेटीकोट के ऊपर से हाथ रख दी | अब मैं इतना तो बेवक़ूफ़ नहीं था की इशारा भी नहीं समझाता | मैं समझ गया की कविता भी चुदाई का खेल खेलना चाहती है, मौका अच्छा है  और लड़की भी चुदवाने को तैयार थी |

मेरी और कविता की जबरदस्त बिस्तर तोड़ चुदाई की दास्तान जानने  के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग … कविता ने चोदना सिखाया (भाग २)

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