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Friday, May 1, 2015

रेप का मज़ा

रेप का मज़ा 

हाय ,मेरा नाम जूही शर्मा हे और में जयपुर कि एक पॉश कॉलोनी में रहती हु। मेरी २ साल पहले ही शादी हुई हे और मेरे पति १ इंजीनियर हे जिनकी पोस्टिंग आजकल पुणे में हे। मेरे पति राकेश के मम्मी पापा जयपुर ही रहते हे तो मुझे उनकी देखभाल के लिए उन्ही के पास रहना पड़ता हे। राकेश हर ३ महीने में १ हफ्ते कि छुट्टी लेकर आ जाते हे तो हम पति पत्नी मिल पाते हे .,में अभी तक १५-१५ दिन के लिए २ बार पुणे गयी हु।मेरे और राकेश के बिच सेक्स सम्बन्ध एक आम पति पत्नी कि तरह ही हे ,राकेश जब जयपुर रहते हे तो रोजाना ही सेक्स करते हे,जब में पुणे गयी तो वंहा भी उन्होंने रोज ही सेक्स किया,पर उनका सेक्स करने का तरीका सीधा साधा से हे ,वो न तो कोई ज्यादा सेक्सी बात करते हे ,न ही कोई नया प्रयोग करते हे ,बस

वो १०-१५ मिनट में मेरे उप्पर चढ़ जाते हे अपने धक्के लगाये ,खलास हुए और उतर गए उन्हें न तो ये एहसास होता हे कि में उत्तेजित हुई या नहीं या मे चरम उत्कर्ष पर पहुची या नही।
पर चूंकि राकेश ने कभी मेरी योनि को प्*यार नहीं किया तो मैं भी एक शर्मीली नारी बनी रही, मैंने भी कभी राकेश के लिंग को प्*यार नहीं किया। मुझे लगता था कि अपनी तरफ से ऐसी पहल करने पर राकेश मुझे चरित्रहीन ना समझ लें।
सच तो यह है कि पिछले सालों में मैंनेराकेश का लिंग अपने अंदर लिया था पर आज तक मैं उसका सही रंग भी नहीं जानती थी… क्*योंकि सैक्*स करते समय राकेश हमेशा लाइट बंद कर देते थे और मेरे ऊपर आ जाते थे। मैंने तो कभी रोशनी में आज तक राकेश को नंगा भी नहीं देखा था। मुझे लगता है कि हम भारतीय नारियों में से अधिकतर ऐसी ही जिन्*दगी जीती हैं… और अपने इसी जीवन से सन्*तुष्*ट भी हैं। परन्*तु कभी कभी इक्*का-दुक्*का बार जब कभी ऐसा कोई दृश्*य आ सामने जाता है तो जीवन में कुछ अधूरापन सा लगने लगता है जिसको सहज करने में 2-3 दिन लग ही जाते हैं।
हम औरतें फिर से अपने घरेलू जीवन में खो जाती हैं और धीरे-धीरे सब कुछ सामान्*य हो जाता है। फिर भी हम अपने जीवन से सन्*तुष्*ट ही होती हैं। क्*योंकि हमारा पहला धर्म पति की सेवा करना और पति की इच्*छाओं को पूरा करना है। यदि हम पति को सन्*तुष्*ट नहीं कर पाती हैं तो शायद यही हमारे जीवन की सबसे बड़ी कमी है।
और यह भी जान जाईये कि लड़की को चरमोत्कर्ष पर लाना कोई बच्चों का खेल नहीं है। हम औरतें झूठे ओर्गास्म का ड्रामा करती हैं ताकि मर्दों के अहम् को ठेस न पहुंचे। न जाने कितनी लड़कियों को चरमोत्कर्ष कभी नसीब नहीं होता और कितनों को एक ही सेक्स में तीन से चार बार हो जाता है। चरमोत्कर्ष केवल पांच-दस मिनट के सेक्स से नहीं मिलता, लगातार तीस मिनट की चुदाई से मिलता है, और जब मिलता है तब ‘हयो रब्बा’ क्या मज़ा मिलता है ! अंदर से सिकुड़न होती है और कान से धुंए निकल जाते हैं, बस आग ही आग बदन से टपकने लगती है।
आम तौर पर लड़कियों की चूत गीली ही रहती है और गीली और तब हो जाती है जब कोई उससे सेक्स की बातें करता है, या प्यार से छूता है, इसे पानी छोड़ना नहीं कहते हैं, पानी छोड़ने का अर्थ, लड़कियों के चरमोत्कर्ष को कहते हैं जो किस्मत वालियों को नसीब होता है वर्ना अक्सर लड़के मुठ चूत में निकालने के बाद पीठ फेर कर सो जाते हैं।
चलिए ये बाते तो समय समय पर कहानी में आगे आती रहेंगी लेकिन अभी बात हम अभी वर्त्तमान कि ही करते हे। अब आप ही सोचिये जिस लड़की कि शादी के २ साल ही हुए हो और उसे साल में केवल कुछ समय ही चुदाई का मोका मिले तो उसका क्या हाल होता होगा वो ही मेरे साथ होता था। में अक्सर चुदाई के लिए तड़पती थी,किसी भी युवा लड़के को देख मेरी चूत गीली हो जाती थी,में बाज़ार जाती तो पेशाबघरों कि और जरुर नजर डालती क्य़ोंकि अक्सर उनमे से कोई न कोई पेशाब कर बहार निकलता होता और अपने लोडे को पेंट के अंदर कर रहा होता,उसके लोडे को देख कर ही में आह भर लेती जो कोई मेरी और देख लेता वो लोडे को इतनी देर में पेंट के अंदर करता कि मेरा मन ख़राब हो जाता।
पर मेरे ससुराल कि इस एरिया में बड़ी इमेज थी तो मुझे बड़े सावधान होकर रहना पड़ता,मेरे सास ससुर मेरा पूरा ख्याल रखते थे,लेकिन मेरी चूत कि खुजली का तो वो भी क्या ही करते। मुझे अपनी चूत कि खुजली वो ही अंगुली करके या मूली बेंगन से शांत करनी पड़ती।

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