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Friday, November 14, 2014

मेरी काम अग्नि को शांत कीजिए

पंडित: शीला…आँखें बाद करके बोलो..स्वाहा..

शीला: स्वाहा..

पंडित: शीला….तुम्हारी धुन्नी कितनी मीठी और गहरी है…………..क्या
तुम्हें यह वाला आससन अच्छा लग रहा है..

शीला: हान्न…पंडितजी….यह आस्सन बहुत अच्छा है….बहुत अच्छाअ…

पंडित: क्या किसी ने तुम्हारी धुन्नी में जीभ डाली है….

शीला: आहह….नहीं पंडितजी…आप पहले हैं…

पंडित: अब तुम मेरे कंधों पे रह के ही पीछे की तरफ लेट जाओ…..हाथों से
ज़मीन का सहारा ले लो…

शीला पंडित के कंधों का सहारा लेकर लेट गयी……

पूरी कहनी पढने के लीय क्लिक कीजिये

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