
इसी तरह मुझे ठंड के दिनों में कटनी जाना था, मैं सारनाथ एक्सप्रेस ट्रेन के जनरल कोच में बैठ गया। मेरे बाजू में दो औरतें बैठी थी। ट्रेन चलने के थोड़ी ही देर बाद मुझे नींद आने लगी। नींद में मेरी कोहनी बगल में बैठी औरत की छाती से टकराने लगी। कुछ देर बाद उसने मुझे अपने से दूर कर दिया जिससे मेरी नींद खुल गई पर मुझे समझ आ गया कि उसे कुछ मजा आ रहा है। मैं फिर नींद का बहाना कर जानबूझ कर उसकी छाती को अपनी कोहनी से दबाने लगा।
उसे धीरे-धीरे मजा आने लगा था और मेरी हिम्मत भी बढ़ने लगी थी। चूँकि ठंड के दिन थे अतः वो शाल ओढ़े हुई थी। मैंने धीरे से अपना हाथ बढ़ा कर उसके छाती को दबाया वो भी नींद का बहाना करने लगी थी पर मुझे समझ आ रहा था कि वो भी मजे लेना चाह रही है।
मैं अपने हाथ से धीरे धीरे उसके स्तनों को उसकी शाल के अंदर दबाने लगा था। उसकी हल्की हल्की सिसकारियाँ निकलने लगी थी। उसने मुझे इशारा किया कि लाइट जल रही है, कोई देख सकता है। मैंने उसकी शाल से हाथ बाहर निकाल लिया।
थोड़ी देर बाद मैं पेशाब जाने के बहाने उठा वापिस आकर मैं बोला- लाइट बंद कर दो, नींद नहीं आ रही है।
तो लाइट बंद हो गई। चूँकि ठंड के दिन थे इसलिए खिड़कियाँ भी बंद थी इससे उधर अँधेरा हो गया और मुझे आजादी मिल गई।
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