
मेरे नंदोई काफी मजाकिया हैं और मेरी उनके साथ अच्छी बनती हैं. क्यूंकि मेरी ननंद मुझ से उम्र में बड़ी हैं इसलिए मैं नंदोई के साथ मजाक कर सकती थी. लेकिन फिर मुझे लगा की नंदोई के मन में कुछ चल रहा था क्यूंकि वो अलग ही भाव से मुझे देखते थे. आर जब मैं अकेली होती तो कभी कमर के ऊपर चिकोटी या कभी मेरे इतने करीब आ जाते की मैं उनकी साँसे सुन सकती थी. उनकी यह हरकतें मुझे अंदर से अच्छी लगती थी लेकिन मैं नाटक करती थी की मुझे पसंद नहीं हैं ऐसा सब.
तब होली का मौका था और मेरी ननंद अपने पति के साथ आई थी मेरे ससुराल में. हमारें यहाँ होली बड़ी शान से मनाते हैं और फिर जीजा साले वगेरह में तो कोई भी त्यौहार मस्त ही होता हैं. उस दिन भी ऐसा ही हुआ. ननंद तो 10-15 मिनिट होली खेल के बैठ गई लेकिन मेरे नंदोई तो मेरे पीछे ही पड़ गए थे जैसे. उन्होंने मुझे खूब रंगा और सब के सामने ही मेरी कमर तक को रंग से लपेड दिया. मैं भाग के अपने कमरे में घुसी और वो वहां भी पीछे आ गए. मैंने दरवाजा बंध करने का प्रयास किया लेकिन वो उसे खोल के अंदर आ घुसे. और अंदर घुसते ही उन्होंने अपने हाथो से मुझे दबोच लिया.
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