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Wednesday, August 19, 2015

गांब की ताजी हवा और बुर के पानी

गांब की ताजी हवा और बुर के पानी

मैंने कहा कि कोई बात नहीं और क्या हम दोस्ती कर सकते है तो वो बोली कि हाँ क्यों नहीं और उसने अपना सीधा हाथ मेरी और बड़ा दिया और मुझे तो बस ऐसा लगा कि मैंने शर्त की पहली सीड़ी पार कर ली हो और फिर मैंने कहा कि क्या तुम मेरे साथ गावं घूमने चलोगी तो वो बोली कि क्या तुम मुझे यह पूरा गावं दिखाओगे तो मैंने भी थोड़ा सा अपना अच्छा व्यहवार दिखाते हुए अपने सर को थोड़ा झुककर कहा कि आप जैसा हुक्म करें, तो उसके दोनों होंठ गुलाब की पंखुड़ियों की तरह खुल गये.. वाह क्या हंसी थी और मैंने तो बस मन ही मन सोचा कि लड़की हँसी तो समझो बस फंसी और मैंने उससे कहा कि आज शाम को मुझे यहीं पर मिलना और में तुम्हे अपने मामा के खेत दिखाने ले चलूँगा तो उसने हाँ में अपना सर हिला दिया और में बड़ा ही खुश था..

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