जोर जोर से दबाओ राजा
जंगल की वीरानियों को चीरता हुआ एक रथ बहुत तेजी से भागा जा रहा था। उस रथ पर सवार वीर्यपुर की महारानी चूतनन्दा सवार थी। उन्हें शिकार का बहुत शौक था। इस समय भी उनके हाथ में धनुष था और निशाना एक सुन्दर हिरण था। चूतनन्दा गज़ब की सुन्दर स्त्री थी। उसके लाल लाल होंठ मानो रस भरे अंगूर हों जिन्हें देखकर मन करता था कि उसके होंठों का रस पी जायें। उसकी चूचियाँ इतनी मुलायम थी मानो मक्खन।
तभी उसके रथ के सामने वो हिरण आया और चूतनन्दा ने तीर चला दिया और हिरण मारा गया। चूतनन्दा रथ से उतरी और हिरण के पेट में घुसा हुआ तीर निकाल के जैसे ही वो मुड़ी उसकी नज़र एक योगी पर पड़ी। उसने देखा कि वो योगी पूरा नंगा खड़ा होकर ध्यान-मग्न है। तभी चूतनन्दा की नज़र उसके सोये हुये नंगे लण्ड पर पड़ी, उस लण्ड को देखकर चूतनन्दा के मुँह में पानी आ गया, वो योगी के पास गई और बोली- ए साधु ! उठो ! जागो ! देखो वीर्यपुर की महारानी चूतनन्दा तुम्हारे सामने खड़ी है और तुम्हें आदेश देती है कि तुम मेरी प्यास बुझाओ। पर उसकी आवाज़ का असर उस योगी पर नहीं पड़ा।
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