मैं दिवार के सहारे से बैठी थी और मेरी चूत के अन्दर मेरी २ उंगलिया घुसी हुई थी. मेरा हाथ बहुत तेज चल रहा था और मैं मस्ती भरी सिस्कारिया ले रही थी. मुझे पता ही नहीं चला, कि दरवाजे पर दीपक कब आकर खड़ा हो गया था.१० मिनट के बाद अचानक से मेरी नज़र दरवाजे पर खड़े दीपक पर पड़ी,
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