देसी भौजाई के पिछवाड़े में लौड़ा ठोक दिया
मैं नया नया जवान हुआ था, और भौजाई के जलवे बहुत पहले से देख रहा था। तो चोदने के लिए फैंटेसी बना रहे मेरे मन ने भौजी को पेलने का प्लान बनाया था, पर जुगाड़ नहीं लग पा रहा था। बस एक दिन की बात है मौका मिल ही तो गया। मैने भाभी को चोदने के लिए हर पल ताक झांक जारी रखी। एक सुबह जाड़े की, ठंड का मौसम, अंधेरा अल्ल सुबह! हर कोई रजाई में दुबका हुआ, मैं छत पर टहल रहा था कि भाभी की भैंस डकार मारने लगी, बां!!! बां!! बां!! ये क्या, लगता है भाभी की भैंस गरम हो गयी है। आज भैया घर में नहीं थे। मैं क्या करुं, मैंने बाहर देखा तो भाभी भैंस को मार रही थीं, डंडे डंडे, साली, गंवार, छिनाल रोज भैंसे से चोदवाती है पर फिर भी गरम ही रहती है। मैं क्या कहूं परिशान हो गयी हूं आज तो इसके भैया भी नहीं हैं यहां पर। मैने खंखारा, आं हां खार्र खर्र! भाभी ने उपर देखा और मुझे देख कर उनकी बांछें खिल गयीं, अरे बबुआ, इधर आओ, तुम कहां थे।
पूरी कहानी पढ़ने के लिये क्लीक कीजिए
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